गढ़वाल की राजनीति में 50 सालों तक बड़ा नाम रहा बलदेव सिंह आर्य का। उन्होंने आजादी के लिये लड़ाई लड़ी कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा, पुलिस की लाठियां खानी पड़ी। एक बार गढ़वाल में ऐसा दौर भी था, जब सवर्ण लोगहरिजनों की डोला पालकी में बैठने नहीं देते थे.आर्य जी ने इस समस्या को सुलझाने का बेड़ा उठाया था. कई जगह उन्होंने मार भी खाई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. शिक्षा अधिकारी कुंदन सिंह गुसांई, कलम सिंह नेगी, जयनंद भारती को साथ लेकर आज से 90 साल पहले विकट स्थिति में सवर्णों से बात की. और हरिजन भी डोला पालकी में चढ़ कर शादी ब्याह कर सकते हैं इसका रास्ता खोला।
अंग्रेजों की पुलिस ने श्री बलदेव सिंह आर्य पर बड़े जुल्म किये. कोटद्वार, दुग्गड़ा में लोगों को संगठित करने पर उन्हें जेल हुई. स्वत्रंता संग्राम सेनानी श्री बलदेव सिंह आर्य का गाँव उमथ पट्टी सिला, पौड़ी गढ़वाल में 12 मई 1912 को जन्म हुआ. आजादी के आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अनेक बार जेलों में रहना पड़ा।
आर्य 1952 से यूपी विधानसभा का पहला चुनाव पौड़ी बद्रीनाथ सुरक्षित सीट से विधायक चुने गए और लखनऊ में मंत्री बने फिर गढ़वाल में जहां जहां सुरक्षित सीट थी वहां से बलदेव सिंह आर्य ने चुनाव लड़ा और विजय हासिल की।
उत्तरकाशी के विधायक ठाकुर किशन सिंह के बढ़ते कद को कांग्रेस का एक गुट पसंद नहीं करता था, इसीलिए बलदेव सिंह आर्य के लिए वह सीट सुरक्षित कराई गई, सुरक्षित होने पर ठाकुर किशन सिंह स्वाभाविक रूप से बाहर हो गए। ठाकुर साहब का कद भी बलदेव सिंह आर्य से कम नहीं था वह संविधान सभा के सदस्य थे। और पहले 1949- 50 एमपी मनोनीत. हालांकि आर्य जी भी 1949- 50 में पौड़ी गढ़वाल से मनोनीत सांसद रहे थे. आर्य जी उत्तरकाशी से तीन बार विधायक रहे। उत्तरकाशी जिला और टिहरी जिले का जौनपुर ब्लॉक मिलाकर यह एक सीट हुआ करती थीं। 2002 तक रही.
उत्तरकाशी के प्रताप वह यूपी में ताकत मंत्री वन, लोक निर्माण मंत्री रहे। 1952 के पौड़ी बद्रीनाथ सीट पर विजय के बाद उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया था। उनकी बेटी बीनू आर्य भी राज्य बनने के बाद चुनाव लड़ने उत्तरकाशी आई थी. अब कहाँ हैं किसी को मालूम नहीं.वह विधायक का चुनाव हार गई थीं.
बलदेव सिंह आर्य, पढ़े लिखे खूब थे. ऐसे दो मौके आये, जब वह चीफ मिनिस्टर की कुर्सी में बैठते बैठते रह गये थे. 1971आदि आदि …बलदेव सिंह आर्य गांधी वादी विचारों के थे. बडे शालीन थे.लखनऊ में लंबे समय तक वह मंत्री रहे, तो एक अलग से पहाड़ उनमें झलकता था.वह नेहरू टोपी पहनते थे..
बलदेव सिंह आर्य 1930, 31 में जयहरीखाल में हरिजन छात्रावास के प्रबंधक रहे.उन्होंने हरिजन ही नहीं , सवर्ण जातियों के लिए उस वक्त स्कूल खुलवाये. 16 प्राथमिक स्कूल श्री राम कृष्ण डालमिया से सहायता मांग कर पौड़ी गढ़वाल में खुलवाये यह 1935 की बात होगी. यही विद्यालय हज़ारों लोगों के बड़े पदों में जाने की नींव बने.
कर्मभूमि अखबार में आर्य जी बताया कि, अंग्रेजों की पुलिस के लाठी चार्ज और उसके अपमान जनक व्यवहार से हम लोग उतेजित थे.छूटने पर हमने कोटद्वार, दुगड्डा सार्वजनिक सभा की. पुलिस, और सरकार के विरुद्ध लोगों को एक जुट किया. फिर सफलता भी मिली, एक दिन मैं ( बलदेव सिंह आर्य) मेरे साथी कमरे में आराम कर रहे थे. अचानक पुलिस ने कमरा घेर कर हम लोगों को गिरफ्तार कर लिया. उस दिन दुगड्डा के सभी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई थी. कोटद्वार लाये गए। एक सप्ताह हवालात में।रखने के बाद मजिस्ट्रेट ने 6 माह की कारवास की सजा सुना दी. हमें मुरादाबाद जेल भेज दिया गया.
बलदेव सिंह आर्य और उनके साथी, मुरादाबाद जेल के फाटक में काफी रात में पहुँचे. जेल बंद हो गई थी, उन्हें फांसी की कोठरियों में बंद कर दिया गया. जो साथी पहले के जेल में गए थे उन्हें बड़ी प्रशन्नता हुईं.और उन्होंने ताली बजा कर स्वागत किया. जेल वालों के दुर्व्यवहार पर भूख हड़ताल कर दी गई. 25 बन्दियों को गोंडा जेल भेजने के आदेश हुए. आर्य और उनके साथियों ने बेड़ी न पहनने पर , गोरे पुलिस ने उनकी छाती पर चढ़ कर, बेड़ियां पहनाई. छह माह बाद, उन्हें और उनके साथी गोविंद सिंह, भागीरथ लाल गुप्ता, नंदी लाल काशीनाथ शास्त्री को छोड़ दिया गया. 23 दिसम्बर 1995 को बलदेव सिंह आर्य को पहाड़ ने एक महान नेता खो दिया था।
लेखक शीशपाल गुसाईं स्वतंत्र पत्रकार