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Friday, November 22, 2024

ग्रामीणों को दर्शन के लिए जौनसार-बावर के गांव-गांव पहुंचते हैं चालदा महाराज।

देहरादून। भगवान शंकर अनेकों नामों से पूजे जातें हैं,भोले नाथ संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं, तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने दुखों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते हैं। ऐसा ही एक शिव धाम देवभूमि के जौनसार- बावर क्षेत्र में मौजूद है, जहां स्वयं प्रकृति गंगाधर का श्रृंगार करती है।
देहरादून का जनजातीय क्षेत्र जौनसार- बावर का आराध्य देव चालदा महासू महाराज घुमक्कड़ (चलने फिरने वाले) देवता के रूप में जाने जाते हैं। हिमाचल से 67 साल बाद समालटा गांव पहुंचे चालदा महासू महाराज यहां 18 माह तक पूजे गए। अब यहां से ढाई साल  के लिए दसऊं पट्टी के प्रवास यात्रा पर रवाना हो गए हैं। यहां चालदा महासू महाराज  का देवभूमि उत्तराखंड में लंबे वक्त बाद आस्था का ये अनोखा संगम देखने को मिला।

कहते हैं उत्तराखंड के कण-कण में देवताओं का निवास है। यही वजह है कि इसे देवभूमि उत्तराखंड, यानी देवताओं की भूमि कहा जाता है। हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में उत्तराखंड के पवित्र स्थानों का जिक्र है, वर्णन है। यहां से जुड़ी कई मान्यताएं हैं, कई लोक कथाएं हैं, जो लोगों की आस्था का केंद्र हैं। देहरादून के जौनसार- बावर के समाल्टा गांव में महाराज का मंदिर और पालकी विदाई के लिए दुल्हन कि तरह सजाया गया था। अपनें अराध्य की विदाई के दौरान भक्तों की आंखे छलछला गई। और वे फफक-फफक कर रो पड़े। भक्तों की आंखो से बहती अविरल आंसुओ की धारा अराध्य महाराज से बिछुडने की और उनके प्रति गहरी आस्था को चरितार्थ कर रही थी। समाल्टा गांव से छत्रधारी चालदा महासू महाराज की विदाई में आस्था का जन सैलाब उमड़ पड़ा।

GRAPHICS

पूर्व में यहां विराजमान हुये हैं छत्रधारी चालदा महाराज।

30 नवंबर 2018 को कोटी कनासर गांव में
23 नवंबर 2019 मोहना गांव
23 नवंबर 2021 को समाल्टा गांव
1 मई 2023 को दसऊं गांव में विराजमान हुए

ग्राउंड0  में जानिये आखिरकार कौन थे महासू महाराज…..?  जौनसार बावर के आराध्य देवता महासू महाराज असल में एक देवता नहीं, बल्कि चार देवताओं का सामूहिक नाम है। स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बौठा महासू और चालदा महासू हैं, जो कि भगवान शिव के ही रूप माने गए हैं। इनमें बासिक महासू सबसे बड़े हैं, जबकि बौठा महासू, पबासिक महासू व चालदा महासू दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर के हैं।  जबकि, चालदा महासू हमेशा जौनसार-बावर, बंगाण, फतेह-पर्वत व हिमाचल क्षेत्र के प्रवास पर रहते हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई  के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता को इष्ट देव के रूप में पूजा जाता है। इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मंदिर को न्यायालय के रूप में मान्यता मिली हुई है।

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