प्रश्न है कि इस तरह की जानलेवा “मानवीय भूल” बार-बार क्यों हो रही है? यह यह कहानी इस असल मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए फैलाई जाती है कि भारतीय रेल एक ढहते हुए इन्फ्रास्ट्रक्चर की मिसाल बनकर रह गई है? इस प्रश्न पर गंभीर विचार-विमर्श की जरूरत है कि हर कुछ अंतराल पर देश में भीषण ट्रेन हादसे क्यों हो रहे हैं। इस बार ऐसी दुर्घटना आंध्र प्रदेश में हुई है। फिर एक खड़ी पैसेंजर ट्रेन को पीछे आकर एक दूसरी पैसेंजर ट्रेन ने टक्कर मार दी। ऐसी घटनाओं के तुरंत बाद अक्सर मीडिया में मानवीय भूल की कहानी प्रचारित कर दी जाती है। मगर प्रश्न है कि इस तरह की जानलेवा “मानवीय भूल” बार-बार क्यों हो रही है?
यह यह कहानी इस असल मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए फैलाई जाती है कि भारतीय रेल एक ढहते हुए इन्फ्रास्ट्रक्चर की मिसाल बनकर रह गई है? दशकों से भारतीय रेल के आधुनिकीकरण की जरूरत बताई जाती रही है। इसके लिए समितियां और आयोग बने। लेकिन उनकी सिफारिशें मंत्रालय की अलमारियों में धूल फांकती रही हैँ। इस बीच देश के कर्ता-धर्ताओं ने अपनी प्राथमिकताएं बदल लीं। आज प्राथमिकता यह नजर आती है कि आर्थिक रूप से सक्षम यात्रियों के लिए कुछ सुविधाजनक ट्रेनें चला दी जाएं और बाकी सब जैसा है, उसी हाल में चलने दिया जाए। चूंकि व्यापारीकरण का नजरिया राजकाज पर हावी है, इसलिए आम नागरिक की जान या सुविधाएं स्वत: प्राथमिकता में नीचे चली जाती हैँ।
इस वर्ष आई सीएजी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 2021-22 में सभी श्रेणियों की यात्री सेवाओं को मिलाकर रेलवे को हुई आय में 68,269 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। हालांकि माल ढुलाई से लगभग इतनी रकम का ही मुनाफा भी हुआ। अब चूंकि नजरिया हर सेक्टर से हुए हानि-लाभ पर टिका है, तो जाहिर है, आम यात्री सेवाओं को उपेक्षायोग्य समझा जाने लगा है। बहरहाल, प्रश्न है कि क्या यह सोचने का सही नजरिया है? किसी संभावनापूर्ण समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सस्ते परिवहन को ऐसी जरूरी सेवाएं समझा जाता है, जिन्हें उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व माना जाता है।
यह अर्थव्यवस्था के विकास के लिए भी अनिवार्य समझा जाता है। वैसे भी समाज या अर्थव्यवस्था का मकसद इनसान को बेहतर जिंदगी मुहैया कराना ही है। बार-बार हो रही रेल दुर्घटनाएं संभवत: इस बात का संकेत हैं कि भारत इस मकसद से भटकता चला जा रहा है।