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Thursday, November 21, 2024

लंबी लकीर खींच गए हैं अनिल बलूनी… चुनौती भरी रहेगी महेंद्र भट्ट के लिए राज्यसभा की पारी

वरिष्ठ पत्रकार राजेश डोबरियाल की टिप्पणी,देहरादून

महेंद्र भट्ट अगर 6 साल पहले राज्यसभा के सदस्य बने होते तो उनकी ज़िंदगी बहुत आसान रहती. राज्यसभा सदस्य के रूप में उन्हें सदन में उपस्थित रहकर बस भाजपा का संख्या बल बढ़ाना था.

अगर आप देखें तो उत्तराखंड के सांसद, चाहे वह लोकसभा के हों या राज्यसभा के, आमतौर पर यही काम करते हैं. राज्यसभा के सांसदों की तो जनता के प्रति जवाबदेही भी नहीं होती इसलिए शायद ही किसी सांसद के पास कोई उल्लेखनीय काम हो, बताने के लिए. महेंद्र भट्ट भी यह आसान ज़िंदगी गुज़ार सकते थे लेकिन…

 

वह अनिल बलूनी की विरासत संभाल रहे हैं और उनके लिए यही चिंता का सबब होना चाहिए. दरअसल अनिल बलूनी इतनी लंबी लकीर खींच गए हैं कि उसे छोटा कर पाना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल है।

 

भट्ट की उम्मीदवारी, भाजपा की ताकत 

 

महेंद्र भट्ट उत्तराखंड से राज्यसभा में जाने वाले 17वें सांसद होंगे. राज्य में विधायकों की संख्या को देखते हुए उनका चुना जाना तय है.

1971 में चमोली के पोखरी में जन्मे महेंद्र भट्ट ने शुरुआती शिक्षा अपने गांव ब्राह्मण थाला से ली और फिर इंटर से एमए तक ऋषिकेश से किया. वह एबीवीपी के नेता रहे हैं और राम मंदिर आंदोलन और राज्य आंदोलन में जेल गए हैं.

राज्य बनने के बाद पहले चुनाव में वह नंदप्रयाग से विधायक बने थे और विधानमंडल में भाजपा के मुख्य सचेतक रहे. 2010 से 2012 तक वह दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे और 2017 से 2022 तक बदरीनाथ विधानसभा के विधायक रहे.

अभी वह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड की प्राकलन समिति, आवास समिति के सदस्य हैं.

महेंद्र भट्ट ज़मीन से जुड़े कार्यकर्ता रहे हैं और पार्टी में उन्हें जो ज़िम्मेदारी दी गई है, उसे उन्होंने बखूबी निभाया है.वह सहज उपलब्ध और साफ़ लेकिन तीखा बोलने वाले व्यक्ति हैं. उनके बयान कई बार उन्हें सुर्खियों में भी ला देते हैं. महेंद्र भट्ट को राज्यसभा उम्मीदवार बनाया जाना दरअसल भाजपा की ताकत है. हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की नीतियों की तरह ही भाजपा की बड़ी शक्ति अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को सम्मान और पद देना भी है।

 

महेंद्र भट्ट, अनिल बलूनी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक इसका सबूत हैं. इसी वजह से छोटे से छोटे कार्यकर्ता में भी यह सपना देखने की हिम्मत आती है कि एक दिन वह भी कुछ बन सकता है, बस निष्ठा से लगा रहे।

 

बलूनी की बड़ी लकीर 

 

 

नवंबर 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद राज्य के कोटे में तीन राज्यसभा सांसद भी आए थे. ये उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए थे और उत्तराखंड के नया राज्य बनने के बाद इनका बाकी कार्यकाल उत्तराखंड में गिना गया. ये थे सुषमा स्वराज, संघ प्रिय गौतम और मनोहर कांत ध्यानी.

तब से अब जुलाई 2022 में राज्यसभा सांसद बनीं कल्पना सैनी तक, राज्य से 16 राज्य सभा सांसद बन चुके हैं. इनमें हरीश रावत और भगत सिंह कोश्यारी जैसे दो मुख्यमंत्री भी शामिल हैं.

लेकिन किसी भी राज्यसभा सांसद ने अब तक राज्य के लिए कुछ उल्लेखनीय किया हो ऐसा पता नहीं चलता. लोकसभा सांसद तो अपनी सीट के लिए काम करते रहे हैं लेकिन राज्यसभा सांसद जिस राज्य से वह चुने जाते रहे हैं, उसके लिए किसी ने कुछ उल्लेखनीय किया हो, इसका ज़िक़्र कम ही है.

2018 में राज्यसभा सांसद बने अनिल बलूनी ने यह परिपाटी तोड़ दी और एक नई इबारत लिखी. यह इसके बावजूद कि डेढ़ साल वह कैंसर से जूझते रहे और यहां भी एक मिसाल बने. कैंसर सर्वाइवर और शानदार क्रिकेटर युवराज सिंह ने उनसे प्रभावित होकर उत्तराखंड में कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए काम करने का फ़ैसला भी किया.

राज्यसभा सांसद की निधि से सड़कों, नालियों बनवाने यानी कि कुछ करता दिखने की परंपरा से हटकर बलूनी ने कुछ ठोस करके दिखाया. छह साल के कार्यकाल में उनके प्रयासों से उत्तराखंड को कई सौगातें मिली हैं।

 

इनमें धनगढ़ी का पुल, मसूरी में पेयजल योजना, उत्तरकाशी और कोटद्वार के अस्पतालों में आईसीयू, कर्णप्रयाग अस्पताल में सी आर्म मशीन, ब्लड बैंक रैक और एनेस्थीसिया मशीन, काठगोदाम देहरादून के बीच नैनी दून एक्सप्रेस, टनकपुर इलाहाबाद के बीच त्रिवेणी एक्सप्रेस और कोटद्वार-दिल्ली के बीच ट्रेन संचालन और बोगियों की संख्या वृद्धि उन्हीं की पहल से संभव हो पाई.

बतौर राज्यसभा सांसद पौड़ी नगर में सांसद निधि से तारामंडल (प्लैनेटेरियम) और पर्वतीय संग्रहालय (माउंटेन म्यूज़ियम) बलूनी का अंतिम उपहार होगा. उन्होंने ने अपनी सांसद निधि से इसके लिए एकमुश्त 15 करोड़ की राशि जारी की है. उनकी कोशिशों से वन भूमि हस्तांतरण का काम भी रिकॉर्ड समय में पूरा हो गया. एक ही दिन में केंद्रीय वन मंत्रालय ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी. परियोजना के लिए एक हेक्टेयर वन भूमि की स्वीकृति का पत्र राज्य सरकार को भेज दिया गया है.

बतौर सांसद अनिल बलूनी के किए गए काम देखकर महसूस होता है कि उनके पास राज्य के लिए एक विज़न है, जो दुर्भाग्य से राज्य के कम ही नेताओं के पास है।

 

बनाया अपना स्टाइल 

 

बतौर राज्यसभा सांसद अपनी सांसद निधि से कोटद्वार और उत्तरकाशी के अस्पतालों में आईसीयू और वेंटिलेटर सेंटर बनवाना बलूनी के शुरुआती कामों में से एक था. फरवरी 2019 में जब इनका काम लगभग पूरा हो गया तो उन्होंने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा कि उद्घाटन की औपचारिकताओं में पड़े बिना इनमें इलाज शुरू करवा दिया जाए ताकि जनता को इनका लाभ मिले. उन्होंने कहा कि औपचारिताओं से ऊपर उठकर व्यवहारिक होने की ज़रूरत है।

 

दिल्ली में राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी की ज़िम्मेदारी का वहन करते हुए भी बलूनी लगातार उत्तराखंड के लिए सोचते रहे. पलायन को रोकने के लिए उन्होंने ‘अपना-वोट, अपने-गांव’ अभियान की शुरुआत की. इसकी शुरुआत उन्होंने अपना वोट अपने गांव में शिफ़्ट करवाकर की.

 

यही नहीं जब वह कैंसर से उबर गए तो पौड़ी में अपने गांव नकोट पहुंचे. ‘मेरा बूथ सबसे मज़बूत’ अभियान की शुरूआत उन्होंने गांव में अपने घर से ही की. यहां उन्होंने अपनी कुलदेवी चंद्रबदनी और क्षेत्रपाल देवता डांडा नागराजा की पूजा भी की. भावुक हो गए बलूनी ने कहा कि उनका पूरा जीवन उत्तराखंड को समर्पित है।

 

इसके साथ ही उन्होंने इगास को अपने गांव मनाने की भी अपील की और इसका भी असर दिखा. उत्तराखंड के पारंपरिक त्यौहार इगास को वह राष्ट्रीय फ़लक पर ले आए।

 

रीढ़ वाले नेता 

 

भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी के रूप में उन्होंने परदे के पीछे रहकर जो काम किया, उसका परिणाम मोदी मैजिक के घर-घर तक पहुंचने के चलते जनमत भाजपा के पक्ष में बनने और लगातार चुनावों में पार्टी की जीत के रूप में सामने आया.

मृदुभाषी अनिल बलूनी ने एक बार यह भी बताया कि वह रीढ़ वाले नेता हैं. जुलाई, 2019 में जब भाजपा के बदनाम विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह उत्तराखंड को गाली देते नज़र आ रहे थे, तो बलूनी ने स्टैंड लिया।

 

इस मामले में उत्तराखंड बीजेपी के नेता कुछ भी बोलने से बच रहे थे लेकिन बलूनी ने साफ़़ शब्दों में कह दिया कि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने वालों पर सख़्त कार्रवाई की ज़रूरत है. उनके दबाव के बाद पार्टी ने चैंपियन को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था, यह अलग बात है कि उनकी छह महीने में ही वापसी हो गई।

 

बलूनी की विदाई और भट्ट की चुनौती 

 

चार दिन पहले यानी 8 फरवरी को राज्यसभा से 56 सांसद रिटायर हो गए, अनिल बलूनी इनमें से एक थे।

 

चंद मिनट के अपने विदाई भाषण में उन्होंने एक बार भी अपने बारे में या अपनी उपलब्धियों के बारे में कुछ नहीं कहा, बस अपने नेताओं गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया कि उन्हें कई अद्भुत क्षणों का गवाह बनने और ऐतिहासिक परिवर्तन में भूमिका निबाहने का मौका दिया गया.बलूनी ने सांसदों के साथ ही संसद के अधिकारियों और कर्मचारियों का भी धन्यवाद किया।

 

इस मौके पर हम भी धन्यवाद करते हैं अनिल बलूनी का कि उन्होंने राज्यसभा सांसदों को एक नई राह दिखाई है. बताया है कि चुपचाप साल गिनकर निकल जाने के अलावा भी राज्यसभा का सांसद बहुत कुछ कर सकता है।

महेंद्र भट्ट के सामने अब स्पष्ट और ताज़ा उदाहरण है जिसे देखकर वह भी अपने कार्यकाल को यादगार बना सकते हैं और चुनौती भी है कि वह अनिल बलूनी की खींची लकीर से लंबी लाइन खींच पाएंगे क्या?

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