उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों की आड़ में घोटाला हो रहा है। सवाल है कि आयोग के पूर्व अधिकारियों पर एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा है ? इसी सवाल के साथ प्रदेश के बेरोज़गार और काँग्रेस ने धामी सरकार से मामले में सीबीआई जांच की मांग की है। यूकेएसएससी नकल प्रकरण पर सीबीआई केसे दखल देगी आइए जानते हैं।
सीबीआई की ताकत
सीबीआई का गठन दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत किया गया। सीबीआई को यह अधिकार दिया गया कि वह केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित मामलों की छानबीन करेगी। लेकिन राज्य सरकार की इजाजत से राज्य में भी छानबीन का अधिकार दिया गया। करप्शन के मामलों की छानबीन का अधिकार भी दिया गया। इसके तहत सीबीआई सीधे करप्शन के केस में छानबीन कर सकती है और केस दर्ज कर सकती है।
सिर्फ सरकारी अधिकारी की जांच
सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर जोगेंद्र सिंह ने बताया कि किसी भी शख्स को अगर यह जानकारी मिलती है कि किसी सरकारी विभाग में करप्शन है या फिर किसी जगह पर रिश्वतखोरी हो रही है तो वह इस बारे में सीबीआई को शिकायत कर सकता है। दिल्ली में सीबीआई के हेड क्वार्टर में एसपी सीबीआई एंटी करप्शन ब्रांच को शिकायत दी जा सकती है। शिकायत के पक्ष में सबूत देने होते हैं। सीबीआई को अगर लगता है कि सबूत पुख्ता है या फिर छानबीन की जरूरत है तो सीबीआई प्रारंभिक जांच (पीई) करती है। पुख्ता सबूत जुटाने के बाद सीबीआई एफआईआर दर्ज करती है। कानून के मुताबिक करप्शन के केस में आरोपी सरकारी अधिकारी होना चाहिए। किसी प्राइवेट शख्स के खिलाफ शिकायत है तो उसका संबंध सरकारी अधिकारी से होना चाहिए तभी सीबीआई केस दर्ज करती है।
खुद पीड़ित होना जरूरी नहीं
करप्शन के केस में शिकायती के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह खुद ही पीड़ित हो। अगर किसी शख्स को किसी सरकारी विभाग में काम कराने के लिए उससे रिश्वत की मांग की जाती है तो वह इसकी शिकायत सीबीआई से कर सकता है। कई बार शिकायती रिश्वत मांगे जाने आदि के बारे में टेलिफोन टैप कर सीबीआई के सामने पेश करता है, ऐसी सूरत में सीबीआई के लिए काम आसान हो जाता है अगर ऐसा नहीं होता तो कई बार सीबीआई के इशारे पर शिकायती आरोपी से हुई बातचीत को टैप करता है और फिर सीबीआई आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाती है।
मुकदमे के लिए मंजूरी लेना जरूरी
हालांकि सरकारी अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल किए जाने के बाद सीबीआई को मुकदमा चलाने के लिए कानूनी प्रावधानों के तहत आरोपी को नियुक्त करने वाले अथॉरिटी से मुकदमा चलाने की अनुमति लेनी होती है। सेंक्शन के बाद ही मुकदमा आगे चलता है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि इसके पीछे तर्क यह है कि सरकारी अधिकारी को कोई परेशान न करे और अगर उसके खिलाफ मामला गंभीर है तो मुकदमा चलाने की इजाजत मिल जाती है। सीआरपीसी की धारा-197 के तहत सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए इजाजत लेनी होती है। हालांकि जॉइंट सेक्रेटरी व उससे ऊपर लेवल के अधिकारी के खिलाफ छानबीन शुरू करने से पहले भी सीबीआई को सीवीसी के प्रावधान के तहत इजाजत लेनी होती है। चार्जशीट के बाद मुकदमा चलाने के लिए दोबारा 197 के तहत इजाजत लेनी होती है।
सुप्रीम और हाई कोर्ट में देते हैं आदेश
हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस आर. एस. सोढ़ी ने बताया कि कानूनी प्रावधानों के तहत करप्शन से संबंधित मामलों में केस दर्ज करने के लिए सीबीआई को किसी अथॉरिटी की इजाजत की जरूरत नहीं है लेकिन करप्शन के अलावा अन्य मामलों में सीबीआई सीधे एफआईआर दर्ज नहीं करती। इसके लिए जरूरी है कि जिस राज्य का मामला है उस राज्य सरकार की सिफारिश हो। ये सिफारिश राज्य सरकार केंद्र के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग को भेजती है और फिर डीओपीटी केस सीबीआई को रेफर करती है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट भी सीबीआई को किसी मामले की छानबीन अपने हाथ में लेने के लिए कह सकती है।