काबुल के अमीर रिश्तेदारों की करोड़ों की संपत्ति को जालसाज ने फर्जीवाड़ा कर लिया। उसने इसके लिए जमीन मालिक को अपनी पत्नी और परदादी को परदादी बताते हुए मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाया और खुद को वारिस साबित किया। नगर निगम और राजस्व विभाग ने इस पूरी प्रक्रिया पर कोई ध्यान नहीं दिया। CO जांच ने इसका पता लगाया है। आरोपी का मुकदमा डालनवाला थाने में दर्ज किया गया है।
समाजसेवी इस्लामुद्दीन अंसारी ने पुलिस से शिकायत की थी। इस्लामुद्दीन प्रशासन और पुलिस से बार-बार शिकायत करता रहता है कि सरकारी और लावारिस भूमि पर कब्जा है। इस शिकायत में उन्होंने कहा कि करनपुर में अमीर ऑफ काबुल के पारिवारिक सदस्यों की जमीन बहुत समय से बेकार थी। शेर मोहम्मद खां पठान की पत्नी बीबी जुबैदा ने इस जमीन को अपना नाम दिया है। जब सौराब खां निवासी रिस्पना नगर को इसकी भनक लगी, तो उसने हड़पने का षडयंत्र रचा। वह भी इस जगह पर काबिज हो गया। उसने 2007 में शेर मोहम्मद खां पठान और बीबी जुबैदा का मृत्यु प्रमाणपत्र बनाया था, जब उसने अपने स्तर से इसकी जांच की।
उसने शेर मोहम्मद खां पठान का बेटा असलम खां बताया। उसने शेर मोहम्मद खां पठान को इस बारे में अपना परदादा बताया। नगर निगम ने बताया कि शेर मोहम्मद खां पठान 1960 में मर गया था। हालाँकि, 1964 में बीबी जुबैदा की मृत्यु को परदादी बताया गया था। उसने इन दोनों का मृत्यु प्रमाणपत्र मिलने के बाद इस जमीन पर अपना कब्जा कर लिया और खुद को वारिस बताया।
हालाँकि, सौराब खां मूलतः अफजलगढ़ बिजनौर का निवासी है। उसका कोई संबंध काबुल के इस परिवार से नहीं है। एसएसपी ने सीओ डालनवाला पूर्णिमा गर्ग से इस मामले की जांच कराई। SHO डालनवाला राजेश साह ने बताया कि जांच में फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई, इसके बाद सौराब खां के खिलाफ डालनवाला थाने में मुकदमा दर्ज किया गया।
सौराब के दादा 10 रुपये प्रति माह किराये पर रहते थे
सौराब का दादा असलम खां था। वह रिस्पना के पास 10 रुपये महीने के किराये पर रहता था। बाद में उनके बेटे कासिम खां, यानी सौराब के पिता, 50 गज के एक कब्जा कर बनाए गए मकान में रहते थे। ऐसे में सौराब के परिवार को शेर मोहम्मद खां से संबंध होता तो उन्हें ऐसा जीवन नहीं जीना पड़ा होता। वह पहले से ही इस संपत्ति का मालिक होते। 2007 से पहले, यह संपत्ति खाली थी।
नगर निगम ने भी नहीं की जांच
नगर निगम के कर्मचारियों ने इस मामले में सौराब खां से अधिक लापरवाही की है। पुराने मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सौराब खां की प्रार्थनापत्रों की सही जांच नहीं की गई। सरकारी रिकॉर्ड भी नहीं देखा गया। इसके बावजूद, इस संपत्ति के सभी दस्तावेज राजस्व रिकॉर्ड में उपलब्ध हैं। ये पुराने मृत्यु प्रमाणपत्र बिना जांच किए जारी किए गए। बाद में इनका वारिसान भी रिकॉर्ड में चढ़ा गया।