इगास पर पहाड़ की परंपरा व लोकसंस्कृति की दिख रही छटा, नाना प्रकार के व्यंजनों की महक रही खुशबू

Dehradun | The folk festivals of ‘Igas’ and ‘Budi Diwali’ have been celebrated here for centuries. To carry forward this legacy, we have declared a holiday on the festival of ‘Igas’: Uttarakhand Chief Minister Pushkar Singh Dhami

 

 

उत्तराखंड की संस्कृति व विरासत अपने में कई ऐसे पर्व समेटे हुए हैं। जिनका यहां की संस्कृति में खास महत्व है। इसी क्रम में दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाने वाला लोकपर्व इगास- बग्वाल आज उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भैलो व पारंपरिक नृत्य के साथ पहाड़ी व्यंजनों की खुशबू गांव ही नहीं शहर में भी महक उठेगी। युवा पीढ़ी को पहाड़ की परंपरा व संस्कृति से रूबरू कराने के लिए लोकपर्व इगास पर विभिन्न सामाजिक संगठन तैयारी पूरी कर चुके हैं।

 

इस तरह मनया जाता है यह लोक पर्व

इस दिन भी सुबह सवेरे घरों की साफ-सफाई करके स्वाले (मीठी पूरी) और दाल के पकौड़े बनाकर बांटे जाते हैं। कुछ इलाकों में भैल्लो खेलने की भी परंपरा है। यह भैल्लो सूखी रिंगाल की लकड़ी या चीड़ के पेड़ की छाल से बनाया जाता है, जिस पर आग लगाकर संध्या के समय जोर-जोर से हवा में घुमाया जाता है। इस मौके पर साथ देते हैं पांरपरिक वाद्य ढोल दमाऊ। इस मौके पर लोग जुटकर झुमेलो गीत भी गाते हैं।

किए जाते हैं ये खास कार्यक्रम

नई पीढ़ी भी इस लोकपर्व को जाने और इसे मनाए, इसके लिए बीते कुछ वर्षों से लोगों को इगास बग्वाल उत्तराखंड में अपने घर-गांव में मनाने की अपील भी की जाती रही है। इस साल बाकायदा राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज के दिन राजकीय अवकाश की घोषणा की है। उन्होंने लोगों से इस पर्व को अपने घर-गांव में मनाने की अपील भी की। इगास पर एक खास परंपरा यह भी है कि रक्षाबंधन पर हाथ पर बांधे गए रक्षासूत्र को बछड़े की पूंछ पर बांधा जाता है और मन्नत पूरी होने के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है। इसी तरह उत्तरकाशी,पौड़ी गढ़वाल के कुछ इलाकों में खेती का काम समाप्त होने पर इन्हीं दिनों रामलीला का मंचन भी होता है, जिसका समापन इगास के दिन होता है।

इस लिए मनाया जाता है इगास

इगास बग्वाल को वर्तमान में पशुधन सुरक्षा और विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पशुओं को नहला धुला कर ,साफ सफाई के बाद उन्हें पिंडा अर्थात पौष्टिक आहार खिलाया जाता है। उनकी उत्तम स्वास्थ और दीर्घायु की कामना की जाती है। इगास बग्वाल मानाने के पीछे एक दूसरा कारण यह है कि , ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार इस दिन गढ़वाल के वीर भड़ ( वीर योद्धा ) माधो सिंह भंडारी ,तिब्बत विजय करके वापस गढ़वाल लौटे थे। उनके विजयोत्सव की ख़ुशी में यह पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है ,कि मुख्य दीपवाली के दिन माधो सिंह भंडारी युद्ध में व्यस्त होने के कारण उनकी प्रजा ने भी दीपवाली नहीं मनाई ,जब वे विजय होकर वापस आये उसके बाद एकादशी के दिन सबने मिलकर विजयोत्सव मनाया। इसके अलावा कुछ लोग यह बताते हैं कि राम जी के अयोध्या लौटने का समाचार पहाड़ो में 11 दिन बाद मिला ,इसलिए यहाँ ग्यारह दिन बाद बग्वाल मनाई जाती है। यह कारण पूर्ण तह अतार्किक और मिथ्या है।