लेखक शिक्षाविद्द डॉ अनिल नौटियाल हैं। जो एक राजकीय शिक्षक हैं।
गुरु वह है जो अंधकार से प्रकाश की ओर हमारा मार्ग प्रशस्त करें, शिक्षक वह है जो सीखने- सिखाने की प्रक्रिया में संलग्न है, अध्यापक वह है जो किसी पाठ्यक्रम के तहत हमें अधिगम कराएं। किसी देश की भावी पीढी के निर्माण में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आचार्य चाणक्य के अनुसार शिक्षक राष्ट्र निर्माता है, निर्माण एवं प्रलय उसकी गोद में खेला करते हैं। राम, कृष्ण, अर्जुन, विवेकानंद, ए पी जे अब्दुल कलाम, सचिन तेंदुलकर आदि अनेकों विभूतियां महान शिक्षकों की देन है। आज समाज में जहां एक ओर मूल्यों की शिक्षा का ह्रास हुआ है वहीं शिक्षक , अभिभावक एवं समाज के नेतृत्व करने वाले लोगों में जिम्मेदारियों व जबाब देही का भी अभाव देखने को मिलता है। वर्तमान परिवेश को देख कर के ऐसा लगता है कि हमारा युवा दिशा विहीन, लक्ष्य विहीन एवं मूल्य विहीन जीवन जीने को विवश है।
विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था भारत में अनेको समर्पित शिक्षक उस उस बुनियाद के पत्थर की तरह गुमनामी के अंधेरे में जीवन जी रहे हैं जहां उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व को देखने वाला कोई नहीं, वही कहीं कतिपय मामलों में पुरस्कार की होड़ में मोटी – मोटी फाइलें बनाकर के अधिकारियों के चक्कर लगा कर शिक्षक सम्मान पाने के लिए जुझारू अध्यापक भी जूझ रहे हैं। इस वर्ष जहां 2 शिक्षकों ने बहुत लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अपने शिक्षक पुरस्कार को सुरक्षित कर पाया, वही इस बात पर बहुत बड़ा अफसोस होता है कि अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में शिक्षक जैसे सम्मानित पद को अपने पुरस्कार के लिए मोटी- मोटी फाइलें बना कर के स्वयं जूझना पड़ता है, और दूसरी तरफ जो कर्म क्षेत्र में समर्पित शिक्षक, छात्रों के बीच अपने कौशल और कर्म को साकार कर रहा है। और फाइलें नहीं बना पा रहा है वह पुरस्कार का वास्तविक हकदार शिक्षक पुरस्कार से प्रायः वंचित ही रह जाता है। क्यों न ऐसा हो कि शिक्षकों की फाइल अधिकारी स्वयं तैयार करें। स्वयंसेवी संस्थाएं और इस तरह की और समाज में मूल्यांकन करने वाले संस्थाएं शिक्षकों के कार्यों का मूल्यांकन करें और उन्हें पुरस्कृत करें। यह भी देखना जरूरी होना चाहिए कि शिक्षक जैसे गरिमामय परम पद को सम्मानित करने वाला व्यक्ति या अधिकारी का स्वयं का कितना बड़ा व्यक्तित्व और कृतित्व है अन्यथा यह शिक्षक का भी घोर अपमान है और अपनी स्वच्छ लोकतांत्रिक व्यवस्था का भी अपमान होगा। शिक्षक दिवस पर सम्मानित होने वाले शिक्षकों की सूची तो प्रकाशित हो जाती है किंतु उन शिक्षकों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व के बारे में भी थोड़ा बहुत जानकारी आम नागरिक के लिए प्रकाशित होनी चाहिए ताकि समाज में शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में जुड़े हुए लोगों को अभिप्रेरणा मिल सके और देश के लिए उन्नत भावी पीढ़ी का निर्माण हो सके। मां बच्चे की पहली शिक्षक होती है और विद्यालयों में पढ़ाने वाला शिक्षक उसका दूसरा शिक्षक इन दोनों की उपेक्षा समाज में घोर निराशा पैदा करती है और हम श्रेष्ठ नागरिकों के निर्माण करने से वंचित हो जाते हैं। बिना श्रेष्ठ शिक्षको के देश दिशाहीन, मूल्यहीन एवं आदर्श विहीन हो जाता है। अतः आज इस शिक्षक दिवस पर हमें इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की नितांत आवश्यकता है कि हमें अपने माताओं का और शिक्षकों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान करना होगा। वर्ष में एक बार एक प्रशस्ति पत्र और 1 अंग वस्त्र पहना करके दिया जाने वाला सम्मान उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि उस शिक्षक को हर दिन सम्मान की दृष्टि से देख कर के उसे दी जाने वाली दैनिक इज्जत होगी।