14.1 C
Dehradun
Saturday, November 23, 2024

इराक सुधरा,नया प्रधानमंत्री समझदार

श्रुति व्यास

अमेरिकी आक्रमण को बीस साल हो चुके है और अब इराक में अपेक्षाकृत शांति है। उसने सन् 2017 में इस्लामिक स्टेट को हराया और उसके नतीजे में शिया-सुन्नी टकराव की जिस लहर की आशंका बहुत से लोगों ने जताई थी, उसे भी रोका। इसलिए नागरिकों की मौतों की संख्या में गिरावट आई, तेल का उत्पादन बढ़ा और सरकार की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई। ईरान और अमेरिका सहित विदेशी ताकतों का देश पर प्रभाव कम हुआ है। क्योंकि इराकी राजनीतिज्ञों ने एक ताकत को दूसरी ताकत के खिलाफ खड़ा करने की कूटनीति सीख ली है।

एक समय था जब ईराक गृहयुद्ध और पंथों में बंटे होने के लिए बदनाम था। उसे प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद उभरी अरब व्यवस्था के ढहने का प्रतीक माना जाता था। लेकिन ये सब बीते कल की बात है। आज बगदाद, कई अन्य मध्यपूर्व देशों की राजधानियों की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है।

दुनिया को लगता है कि यह शांति और स्थिरता, अमेरिका द्वारा सद्दाम हुसैन का राज खत्म कर देने का नतीजा है। वास्तव में अमेरिका का इराक पर हमला एक असफल, खर्चीली और विनाशकारी कवायद थी, जिसने अमेरिका को शर्मिंदा किया और ईराक को अपमानित। सन् 2019 में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार 62 प्रतिशत वयस्क अमेरिकी, जिनमें ईराक युद्ध में भाग ले चुके ज्यादातर सैन्यकर्मी भी शामिल हैं, मानते हैं कि वह युद्ध लड़े जाने लायक नहीं था। अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने उस समय सारी दुनिया को बताया था कि यह आक्रमण इराक की जनता को एक हिंसक और अधिनायकवादी सरकार से ‘मुक्ति’ दिलाने के लिए किया जा रहा है। किंतु इसमें करीब 2,00,000 ईराकी प्रत्यक्ष हिंसा में मारे गए और दसियों लाख अप्रत्यक्ष हिंसा में (जैसे स्वास्थ्य सुविधाओं, भोजन, साफ़-सफाई और पानी की कमी)। इस हमले के कारण उत्पन्न हुई अस्थिरता की वजह से इस्लामिक स्टेट (आईएस) द्वारा सन् 2014 से 2017 के बीच और ज्यादा मानवाधिकार हनन और हिंसा की गई। लेकिन आज इराक में हालात पहले से बेहतर हैं।

बीस साल पहले अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री कोलिन पावेल ने संयुक्त राष्ट्र में वह कुख्यात भाषण दिया था जिसमें उन्होंने दुनिया को अमेरिका द्वारा हासिल की गई उस कथित ठोस गुप्त जानकारी के बारे में बताया था जिसके अनुसार इराक सामूहिक विनाश के हथियारों का भंडार बना रहा था। और इस सप्ताह न्यूयार्क में उसी संयुक्त राष्ट्र महासभा को इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुडानी संबोधित करेंगे और दुनिया को बताएंगे कि वे ही ऐसे नेता हैं जो अपने देश की दो पुरानी समस्याओं- भ्रष्टाचार और अस्थिरता – को हल करेंगे। वे दुनिया को बताएंगे कि सद्दाम हुसैन के बाद की पीढ़ी के राजनीतिज्ञ होने के नाते वे अपनी जनता और उसकी बदलाव की आकांक्षा को समझ पाए हैं। वे दुनिया को बताएंगे कि इराक अपने अतीत को पीछे छोड़ चुका है और एक स्थिर राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है और इस क्षेत्र में एक भरोसेमंद साथी बन सकता है।

किंतु एक स्थिर राष्ट्र होने के बावजूद इराक उन समस्याओं से जूझ रहा है जिनका मुकाबला एक स्थिर राष्ट्र को भी करना पड़ता है। इनमें शामिल है ग्लोबल वार्मिंग – इराक लगातार चौथे वर्ष सूखे का सामना कर रहा है और एक कृषि विज्ञान स्नातक होने के नाते अल सुडानी इस संकट को अच्छे से  समझते हैं। एक ऐसा देश जिसमें भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं और जहां अधिकांश नौकरियां सरकारी क्षेत्र में हैं और जहां एक अल्प वेतन वाली नौकरी हासिल करने के लिए भी आवेदकों को या तो घूस देना पड़ती है या किसी राजनीतिज्ञ की मदद लेनी पड़ती है। पश्चिमी व्यवसायी भयावह भ्रष्टाचार, नौकरशाही द्वारा खड़ी की जाने वाली बाधाओं और राजनैतिक असुरक्षा के चलते इराक में निवेश नहीं करना चाहते। लंबे समय से इराक पर नजर रखने वाले विश्लेषकों ने चेताया है कि अल-सूडानी के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल कुछ लोग, पश्चिमी देशों और सऊदी अरब से निकटता की उनकी पहल के पक्ष में नहीं हैं।

पिछले वर्ष हुए चुनावों में वर्तमान प्रधानमंत्री की जीत इसलिए हुई क्योंकि वे स्वयं शिया मुसलमान हैं और इराक के सुन्नी व कुर्द सहित सभी पक्ष उनके नाम पर सहमत थे। किंतु उनकी विजय के बाद से उनके कुछ शिया राजनैतिक समर्थक उनके आलोचक हो गए हैं क्योंकि प्रधामंत्री अपनी प्राथमिकताओं पर जोर देने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए प्रधानमंत्री अल सुडानी की संयुक्त राष्ट्र संघ की इस सप्ताह की यात्रा का एक प्रमुख लक्ष्य है यूरोप और अमेरिका से और निवेश लाना करना और प्राकृतिक गैस के उत्पादन के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण हेतु सुन्नी अरब देशों की और अधिक मदद हासिल करना। इससे अंतत: इराक ऊर्जा के क्षेत्र में अधिक आत्मनिर्भर हो सकेगा और उसकी ईरान पर निर्भरता कम होगी, जो आज इराक की 35 से 40 प्रतिशत ऊर्जा की मांग की पूर्ति करता है।

हाल में ईरान और इराक को जोडऩे वाले एक रेलमार्ग के निर्माण पर सहमति बनी है।  ईरान के इराक पर लगातार बढ़ते प्रभाव को लेकर कई लोगों का मानना है कि इससे इराक, ईरान की गोदी में बैठने की ओर जा रहा है। लेकिन अभी अल सुडानी का ध्यान शांति कायम रखने पर केन्द्रित है क्योंकि आर्थिक विकास और विदेशी निवेश की उनकी आशाएं पूरी होने के लिए स्थिरता आवश्यक है।इराक आज बीस साल बाद परिपक्व हो गया है।

Related Articles

Stay Connected

0FansLike
3,912FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles