देहरादून। परिवार के वे पूर्वज जो ब्रह्म में लीन हो गए हैं उन्हें हम पितृ मानते हैं हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसा बताया गया है कि जब तक किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अगला जन्म नहीं हो जाता तब तक वह सूक्ष्म लोक में रहता है और वह इस सूक्ष्म लोक से अपने परिवार का ध्यान रखता है पितृपक्ष में ये पितृ धरती पर आकर अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देकर उनकी समस्याएं दूर करते हैं
पितृपक्ष में हम सभी लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनकी याद में दान पुण्य कर अपने धर्म का पालन करते हैं देहरादून स्थित संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य ज्योतिषाचार्य डॉ राम भूषण बिजल्वाण से जानेंगे पितृपक्ष में कौन जल अर्पित कर सकता है और कौन श्राद्ध कर सकता है.
कौन कर सकता है पितरों के लिए जल अर्पण या श्राद्ध?
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार घर का मुखिया या प्रथम पुरुष अपने पितरों का श्राद्ध या नित्य तर्पण कर सकता है. यदि घर का मुखिया घर में मौजूद नहीं हो तो उसके अभाव में घर का कोई भी पुरुष अपने पितरों को जल चढ़ा सकता है।
इनके अलावा पुत्र और नाती को भी तर्पण और श्राद्ध का अधिकार प्राप्त होता है, लेकिन अपने पितरों को जल अर्पण करते समय कुछ नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
पितृपक्ष में नहीं खानी चाहिए ये सब्जियां
पितृपक्ष में मांसाहारी भोजन पर तो मनाही होती ही है। लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसे शाकाहारी भोजन भी होते हैं, जिसे पितृपक्ष में नहीं खाना चाहिए। जैसे इस दौरान आलू, अरबी, मूली और कंद वाली सब्जियों को नहीं खाना चाहिए। इन सब्जियां से बना भोजन पितरों को भी नहीं चढ़ाना चाहिए और ना ही ब्राह्मण भोज के लिए इन सब्जियों को प्रयोग करना चाहिए।
पितृपक्ष में क्यों वर्जित मानी जाती है ये दालें
पितृपक्ष में चना, चने की दाल, मसूल की दाल खाना वर्जित होता है। मसूर की दाल को श्राद्धकर्म के दौरान भूलकर भी शामिल न करें। साथ ही चने से बना सत्तू भी इस दौरान नहीं खाना चाहिए।