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Thursday, March 28, 2024

कुमांऊनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित ‘बाल-उत्सव’ में नाटकों का मंचन आरंभ

कुमांऊनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित ‘बाल-उत्सव’ में नाटकों का मंचन आरंभ
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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। कुमांऊनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा, 3 जुलाई को आईटीओ स्थित, प्यारेलाल भवन में ‘बाल उत्सव’ का श्रीगणेश, अकादमी उपाध्यक्ष एम एस रावत तथा अकादमी पदाधिकारियों, सदस्यों व अन्य आमन्त्रित विशिष्ट अतिथियों के कर कमलो, दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर दिल्ली सरकार, अकादमी सचिव, डाॅ जीतराम भट्ट व अकादमी उपाध्यक्ष, एम एस रावत द्वारा, आमन्त्रित सभी अतिथियों व खचाखच भरे सभागार मे उपस्थित सभी दर्शकों, रंगकर्मियों, प्रबुद्ध भाषाविदो व पत्रकारों का हार्दिक स्वागत, अभिनंदन किया गया।

आयोजन के इस अवसर पर, अकादमी सचिव व उपाध्यक्ष द्वारा, 2019 मे गठित अकादमी के, 2022 तक किए गए कार्यो व मिली सफलता तथा भविष्य की योजनाओ पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। व्यक्त किया गया, विगत वर्षों मे अकादमी द्वारा, दिल्ली प्रवास मे भाषाई चेतना जागृत की गई है। कला व संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के क्षेत्र मे लोक उत्सव, संगोष्ठीया व भाषा यात्रा जैसे आयोजन पर कार्य किया है। दिल्ली प्रवास मे अन्य समाजों की संस्कृति, परंपराओ, बोली-भाषा के मध्य, उत्तराखंड की बोली-भाषाओं का संरक्षण कैसे किया जाए, इस सोच के तहत, गठित अकादमी उक्त आयोजनों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। समय-समय पर विभिन्न प्रकार के आयोजन कर रही है। आयोजित ‘बाल-उत्सव’ भी उसी संवर्धन की एक कड़ी है।

व्यक्त किया गया, उत्तराखंड से दिल्ली प्रवास मे, रोजगार हेतु पलायन हुआ है, साथ ही अंचल की संस्कृति और बोली-भाषा का भी पलायन हुआ है। भाषा संग्रह के माध्यम से, भाषाओं को समझना आसान होगा। भाषा के संवर्धन के लिए एक चेन बनाई हुई है। उत्तराखंड प्रवासी बहुल इलाको मे, भाषा केन्द्र खोलने की ओर, गठित अकादमी अग्रसर है। बच्चों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रवासी लेखको की किताबे प्रकाशित हो, अकादमी की यह, चाहत है। व्यक्त किया गया, उत्तराखंड का एक मंडल, एक राज्य, एक भाषा हो इस सोच के तहत, गठित अकादमी द्वारा, इस कमी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

अकादमी पदाधिकारियों द्वारा, व्यक्त किया गया, ग्रीष्मकालीन अवकाश मे प्रवासी उत्तराखंडी, कुमांऊनी, गढ़वाली और जौनसारी, 8 से 16 वर्ष के नौनिहालों के लिए, दस जून से, दिल्ली के विभिन्न तेरह जगहो पर, बोली-भाषा के नाटकों के मंचन के लिए, आनन-फानन मे, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व अकादमी चेयरमैन व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की पहल पर, बाल-उत्सव आयोजन से पूर्व कार्यशालाओं का आयोजन किया गया था। आज 3 जुलाई से 9 जुलाई, एक हफ्ते तक, चुने हुए कुमांउनी, गढ़वाली व जौनसारी बोली-भाषा के इन लोकनाट्यो तथा लोक परंपराओ पर आधारित नाटको का शुभारंभ किया जा रहा है।

अकादमी पदाधिकारियों द्वारा, व्यक्त किया गया, आयोजित, ‘बाल-उत्सव’ के तहत, पहला गढ़वाली बोली-भाषा नाटक, ‘तीलू रौतेली’ का मंचन, आजादी के अमृत महोत्सव पर आयोजित करना, प्रासंगिक समझा गया। 21 बाल कलाकारों व 13 दृश्यों मे मंचित किए गए, इस ऐतिहासिक वीरगाथा पर आधारित नाटक का नाट्य निर्देशन डाॅ सुवर्ण रावत द्वारा किया जा रहा है।

ऐतिहासिक वीरगाथा पर आधारित नाटक ‘तीलू रौतेली’, डाॅ सुवर्ण रावत के निर्देशन मे मंचित किया गया। मंचित नाटक गढ़वाल के लोकनृत्यों, व अंचल के गीत संगीत से परिपूर्ण था। बाजार व युद्ध के दृश्य, प्रभावशाली थे। बाल पात्रों द्वारा त्रुटि विहीन गढ़वाली बोली में व्यक्त संवादो ने, श्रोताओं को प्रभावित व तालियां बजाने को मजबूर किया। परिधान पात्रों के अनुकूल थे। वीरांगना ‘तीलू रौतेली’ की वीरता, उसके नेतृत्व व उसकी वीरता की परिकाष्ठा को मंचित नाटक मे, उस रूप में नही उभारा गया, जिस रूप में इस वीरांगना को याद किया जाता रहा है।

अकादमी द्वारा आयोजित, ‘बाल-उत्सव’ के तहत, पूरन चंद्र कांडपाल द्वारा कुमांऊनी बोली-भाषा मे लिखित दूसरा नाटक ‘मि च्यल छ्युं’, अखिलेश भट्ट व सह निर्देशक भुवन गोस्वामी के निर्देशन मे सफलता पूर्वक मंचित किया गया। मंचित नाटक बालिका शिक्षा के महत्व को उजागर करता नजर आया। नाटक द्वारा संदेश दिया गया, किसी भी स्तर पर आज, बालिकाओ को लड़को से कम नहीं समझा जाना चाहिए। बालिकाऐ वे सब काम कर सकती हैं, जो बालक कर सकते हैं। मंचित नाटक का कथासार बहुत छोटा व सिर्फ एक संदेश तक सीमित था। नाटक को विस्तार देने के लिए उत्तराखण्ड के लोकगीत व नृत्यों का नाटक मे समावेश करना, नाट्य निर्देशक अखिलेश भट्ट के निर्देशन की खूबी कहा जा सकता है। स्कूल प्रार्थना का दृश्य, परी व चौफला नृत्य प्रभावशाली थे। नाटक लेखक पूरन चंद्र कांडपाल द्वारा, 26 बाल कलाकारों द्वारा प्रतिभाग किए मंचित नाटक के मध्य, कुछ ऐसे ठेट कुमांऊनी बोली के संवादो को पिरोया गया था, जिन्हे सुन, श्रोतागण हंस-हंस कर लोटपोट होते देखे गए। इन्ही संवादो मे एक संवाद, बच्चे के नामकरण पर व्यक्त किया गया था- ‘भात खां है, आओ हो…।’ निष्कर्ष स्वरूप, गीत-संगीत प्रधान यह कुमांऊनी नाटक ‘मि च्यल छ्यू’ श्रोताओं को खूब भाया।

मंचित उक्त दोनों नाटकों के बाल कलाकारों, निर्देशकों व भाषाविदों को, अकादमी सचिव व अन्य आमन्त्रित गणमान्य अतिथियों के कर कमलो, प्रमाण पत्र भैट किए गए, पुष्प गुच्छ भैट कर सम्मानित किया गया।

3 जुलाई से आरंभ इस ‘बाल-उत्सव’ के अंतरगत, कुल 13 नाटकों मे 5 गढ़वाली, 5 कुमांऊनी और 3 जौनसारी नाटकों का मंचन होना है। आयोजकों द्वारा अवगत कराया गया है, मंचित नाटकों मे करीब चालीस फीसद अन्य राज्यो की बोली-भाषाओ के बाल कलाकारों द्वारा, मंचित होने वाले नाटकों मे प्रतिभाग किया गया है, जो सराहनीय है।

4 जुलाई से, 8 जुलाई तक क्रमश प्रतिदिन दो-दो नाटकों का मंचन नाटक निर्देशक चंद्र कला नेगी/ ऋतु पंत, हिम्मत सिंह नेगी/ निशांत रौथाण, लक्ष्मी रावत/पूजा बडोला, राजेन्द्र तोमर/ तिलक राम शर्मा, भगवंत मनराल/रेखा पाटनी, नरेंद्र पान्थरी/उमेद सिंह नेगी, एन पाण्डेय ‘खिमदा’/संगीता सुयाल, बिपिन देव/ब्रज मोहन वेदवाल, संयोगिता ध्यानी/दर्शन सिंह रावत, मंजूषा जोशी/तारा दत्त जोशी तथा भाषाविद् क्रमश: सुनील जोशी, जगदीश नोडियाल, मदन मोहन डुकलान, रमेश चन्द्र जोशी, नीरज बवाडी, डाॅ बिहारी लाल जलंधरी, रमेश हितैषी, रघुवर दत्त शर्मा, रणीराम गढ़वाली, खजान दत्त शर्मा, तथा 9 जुलाई को भाषाविद पृथ्वीसिंह केदारखंडी, आलेखित नाटक ‘रामी बौराणा’ का अंतिम मंचन, आशीष शर्मा के निर्देशन तथा रमेश ठंगरियाल के सह निर्देशन मे मंचित किया जायेगा। तत्पश्चात, qrdzzdआयोजित ‘बाल-उत्सव’ का समापन होगा।

गठित कुमांऊनी, गढ़वाली और जौनसारी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा, उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों मे प्रवासरत प्रवासी बाल कलाकारों को, प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से, बाल-रंगमंच कार्यशाला के इस आयोजन को, उत्तराखंड के प्रवासी जनों द्वारा बडे स्तर पर सराहा जा रहा है।
जिसकी पुष्टि, नाटकों का मंचन देखने आऐ, श्रोताओं से खचाखच भरे, प्यारेलाल भवन सभागार की दर्शक दीर्घा का, अवलोकन कर किया जा सकता है।
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cmpapnai1957@gmail.com
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