डॉ हरीश चंद्र अंडोला, दून यूनिवर्सिटी देहरादून।
देवभूमि उत्तराखंड की धरा पर जन्म लेकर अनेक सपूतों ने भारत माता की रक्षा के लिए अपने को समर्पित किया। उन्हीं वीर सपूतों में से एक नाम है स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. राम सिंह धौनी। उत्तराखंड के अल्मोड़ा के लमगड़ा ब्लॉक अंतर्गत तल्ला सालम के ग्राम बिनौला के एक सामान्य परिवार में हिम्मत सिंह धौनी व कुंती देवी के घर एक बालक ने 24 फरवरी, 1893 में जन्म लिया, जिसका नाम राम सिंह धौनी रखा गया। जो कालांतर में जय हिंद का प्रणेता व स्वतंत्रता आंदोलन का अमर सेनानी बना। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के चलते उन्हें सालम के पहले स्नातक होने का गौरव हासिल था। उन्होंने देश की आजादी के आंदोलन के चलते सरकारी नौकरी भी ठुकरा दी थी।
राम सिंह धौनी हाईस्कूल की पढ़ाई के समय एकबार स्वामी सत्यदेव महाराज के संपर्क में आए। हाईस्कूल उत्तीर्ण करने पर उनके माता-पिता चाहते थे कि बेटा कोई रोजगार प्राप्त कर पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करे, किंतु धौनी जी के मन में समाज सुधार व देश सेवा की धुन पैदा हो गई। कुशाग्र बुद्धि के इस बालक ने मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और फिर इलाहाबाद के क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक डिग्री भी प्रथम श्रेणी में हासिल की। इससे धौनी जी को सालम क्षेत्र का प्रथम स्नातक होने का गौरव प्राप्त हुआ। प्रयाग में शिक्षा ग्रहण करते समय से ही धौनी जी झुकाव स्वतंत्रता आंदोलन की ओर हुआ तथा होम रूल लीग के सदस्य बन गए। बीए की डिग्री लेने के बाद उनकी कुशाग्र बुद्धि को देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार तत्कालीन समय में नायब तहसीलदार बनाना चाहती थी, लेकिन उन्होंने सरकारी पद को ठुकरा दिया। इसके बाद राम सिंह धौनी जयपुर में एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक बने। भारत माता को आजाद देखने का सपना साकार करने के लिए उन्हें नौकरी रास नहीं आयी और वह वापस अल्मोड़ा लौट आए। उन्होंने उस दौर में जिले के सालम क्षेत्र समेत अन्य विभिन्न क्षेत्रों में जाकर युवाओं में देश प्रेम की अलख जगाई। नवयुवकों में देश की आजादी के लिए जोश भरा। उन्होंने जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री का दायित्व भी निभाया तथा बाद में जिला परिषद के पहले अध्यक्ष निर्वाचित हुए। जिला परिषद अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जनता की जरूरतों के अनुसार कई प्राथमिक विद्यालय व औषधालय खुलवाए। शिक्षा व स्वास्थ्य प्राथमिकताओं में शामिल था। उन्होंने 1921 में सर्वप्रथम जय¨हद का उद्बोधन किया। वह साथियों को आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए सदैव प्रेरित करते रहे और इसके लिए जिसे भी पत्र लिखते, तो उसमें सबसे ऊपर जय हिंद अवश्य लिखते थे।
ये था जीवन का मुख्य उद्देश्य
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महापुरूषों के कार्यो से प्रेरणा एवं अपने से बड़ों का सदा आदर करना।
देश की दशा का ज्ञान एवं उनके सुधारों के उपायों की खोज करना
ऐसे नवयुवकों को तैयार करना जो देश की भलाई में ही जीवन लगाएं
शिक्षा के माध्यम से देश के युवाओं को जागृत करना