पर्यटन विभाग की नजर से ओझल हुआ प्राचीनतम बालेश्वर मंदिर
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बेड़ीनाग से थल पिथौरागढ़ को जाते हुए पूर्वी रामगंगा के पुल को पार करते ही थल का बाजार शुरु हो जाता है. मुख्य बाजार की ओर जाते हुए पुल से लगभग 25-30 मीटर की दूरी पर बाईं ओर रामगंगा के किनारे बालेश्वर महादेव का सदियों पुराना मन्दिर है जो नागर शैली में निर्मित है. यह कुमाऊँ के प्राचीनतम देवालयों में एक है। यह थल केदार मंदिर शोर घाटी के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित एक हिंदू प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस थल केदार मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की गई है। थल केदार मंदिर जाने के लिए ट्रैकिंग करनी पड़ती है, क्योंकि यह शिव मंदिर समुद्र तल से लगभग 800 मीटर की ऊंचाई के पहाड़ी पर स्थित है।यह धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं के अलावा पर्यटकों को भी काफी पसंद आती है। क्योंकि यहां जाने के लिए लगभग 8 किलोमीटर की जो ट्रैकिंग करनी पड़ती है, और इस ट्रैकिंग के दौरान जो दृश्य दिखता है और मंदिर के पास पहुंच जाने के उपरांत जो दृश्य दिखता है, वह काफी आकर्षक के साथ–साथ मनमोहक भी होता है। यही कारण है कि यह स्थान धार्मिक स्थल के साथ–साथ पर्यटक स्थल भी माना जाता है। उत्तराखंड में मानसखंड का ज़िक्र पश्चिम में नंदा देवी पर्वत से पूर्व में नेपाल स्थित काकगिरि पर्वत तक मिलता है. 1881 में अंग्रेज़ अधिकारी एडविन टी ऐटकिंसन ने हिमालयी ज़िलों का जो गजेटियर तैयार किया था, उसमें भी मानसखंड का ज़िक्र है. वर्तमान में इसकी भारतीय सीमा महाकाली नदी तक है. काली कुमाऊं मानसखंड का अंतिम बिंदु है. मध्य हिमालयी क्षेत्र गढ़वाल और कुमाऊं को उत्तराखंड कहा गया है. पुराणों में गढ़वाल को केदारखंड तो कुमाऊं मंडल को मानसखंड के रूप में जाना जाता है. सरकार अब पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गढ़वाल के चार धाम की तर्ज पर कुमाऊं के मंदिरों को विकसित करना चाहती है. इसके लिए मानसखंड कॉरिडोर नाम से प्रोजेक्ट तैयार किया जा रहा है, जिसे मंदिरमाला प्रोजेक्ट भी कहा जा रहा है. इसके तहत कुमाऊं के प्रमुख मंदिरों को बेहतर सड़कों से कनेक्ट किया जाएगा. गढ़वाल और कुमाऊं के बीच रोड कनेक्टिविटी भी सुधारी जाएगी. पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मानसखंड मंदिरमाला मिशन के तहत प्राचीन मंदिरों को मानसखंड सर्किट से जोड़ने के लिए पर्यटन विभाग ने कुमाऊं क्षेत्र के छह जिलों के 30 प्राचीन मंदिरों के नाम की घोषणा की है। इनके अवस्थापना और सौंदर्यीकरण के लिए मंदिरों को चिह्नित किया है। लेकिन थल के रामगंगा, बहुला और क्रांति नदी के त्रिवेणी संगम में स्थित प्राचीनतम बालेश्वर महादेव के मंदिर को इसके परिधि में नहीं रखा गया है।लोगों का कहना है कि त्रेता युग में बानरराज बाली ने इसी संगम में एक पांव में खड़े होकर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। प्रसन्न होकर शिव ने बाली को बाल रूप में दर्शन देकर स्वंयभू शिवलिंग में समाहित हो गए और यह बालेश्वर या बालीश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 7वीं सदी में बलतिर गांव में बालतीर्थ के रूप बालेश्वर मंदिर की स्थापना हुई, 9वीं सदी में गोल गांव के वर्तमान इंटर कॉलेज में और 9वीं सदी में ही त्रिरथ नागर शैली कलाकृति के एक मंदिर की स्थापना थल के पास बहुला और रामगंगा नदी के तट पर हुई। चंद राजा के शासन काल में 12 वीं सदी में उद्योत चंद राजा ने मंदिर की स्थापना की थी। प्राचीन काल में यही से पवित्र कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू होती थी। राजा उद्योत चंद ने कोटिगांव के पुजारियों को ताम्रपत्र भी दिया था जो आज भी धरोहर के रूप में उनके पास मौजूद है। स्कंद पुराण के मानसखंड के 108 वें अध्याय में प्राचीन बालेश्वर महादेव के मंदिर की महिमा का उल्लेख किया गया है कि यहां दर्शन करने मात्र से काशी के बराबर फल मिलता है। क्रांति, बहुला और रामगंगा नदी के त्रिवेणी संगम में माघ के धर्म के महीने में स्नान करने से सारे अरिष्टों का परिहार हो जाते हैं। संगम में डुपकी लगाने से मानव के सारे पाप धुल जाते हैं। उत्तर भारत में चार देवालयों में शुमार इस देवालय में वर्ष भर में उत्तरायणी, शिवरात्रि और बैशाखी पर्व पर भव्य मेला लगता है। इसके बाद भी इसे मानसखंड मंदिर माला में शामिल नहीं किया गया है।स्कंद पुराण के मानस खंड के 108 वें अध्याय के 17 वें श्लोक में इस स्वयंभू शिवलिंग वाले पौराणिक बालेश्वर मंदिर को सभी फल प्राप्ति का सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है। प्रधानमंत्री अपने उत्तराखंड दौरे पर कह चुके हैं, ‘यह दशक उत्तराखंड का होगा.’ मानसखंड मंदिरमाला मिशन मिशन इसी दिशा में उठाया गया कदम है. ऐसे प्राचीन मानसखंड वर्णित मंदिर को मानसखंड सर्किट से नहीं जोड़ना आश्चर्य का विषय है।