प्रदेश के राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पिछले शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में व्यापक दावे करने वाली सुस्ती ने हजारों विद्यार्थियों का भविष्य खतरा में डाल दिया है। वे न तो आयु सीमा से जुड़ी सीडीएस भर्ती में शामिल हो पा रहे हैं, न ही राज्य या बाहरी विश्वविद्यालयों में पीजी में दाखिला ले पा रहे हैं।
उनकी छात्रवृत्ति भी अटक रही है क्योंकि रिजल्ट समय पर नहीं आया है। ये सब तब हुआ है जब उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने प्रदेश में प्रवेश, सत्र और परीक्षा की घोषणा की है। विद्यापीठ के परिस्थितियों और विद्यार्थियों के नुकसान पर एक रिपोर्ट।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय: गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अपने अकादमिक कैलेंडर में परीक्षाओं का उल्लेख नहीं किया है, लेकिन पीजी दाखिलों के समय यूजी का अंतिम वर्ष का रिजल्ट आवश्यक है। पीजी दाखिले अब शुरू हो चुके हैं, लेकिन स्नातक की अंतिम परीक्षाओं के बाद अभ्यास अभी भी जारी है। नतीजों का कोई अंत नहीं है।
कुमाऊं विश्वविद्यालय:विवि के अकादमिक कैलेंडर के अनुसार, वार्षिक पैटर्न के कोर्स (बीए, बीएससी, आदि) की परीक्षाएं 16 अप्रैल से छह मई तक कराई गईं, और सात जून को परिणाम घोषित किए गए. 16 अगस्त को विश्वविद्यालय का एनवायरमेंटल साइंस का आखिरी पेपर हुआ। अब परिणाम स्पष्ट है।
श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय: विश्वविद्यालय की वार्षिक स्नातक परीक्षाएं 10 अप्रैल से 5 मई के बीच अकादमिक कैलेंडर में होनी थीं। लेकिन विश्वविद्यालय की परीक्षाएं 13 जून को समाप्त हुईं। इन परीक्षाओं के परिणाम अभी तक नहीं मिले हैं।
सोबन सिंह जीना अल्मोड़ा विश्वविद्यालय: अकादमिक कैलेंडर के अनुसार परीक्षाएं 9 मई से 9 जून के बीच होनी थीं। विद्यापीठ में बीए, बीएससी और बीकॉम की परीक्षाएं 7 अक्तूबर तक होंगी। ऐसे में मुझे नहीं पता कि कब दाखिले होंगे और कब रिजल्ट आएगा।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय: ग्रीष्मकालीन सत्र की वार्षिक परीक्षाएं जून से जुलाई में होनी चाहिए, लेकिन स्नातक की परीक्षाएं 28 अगस्त तक होनी चाहिए। यहां के विद्यार्थी पीजी में दूसरे स्थान पर दाखिला नहीं ले पाएंगे जब रिजल्ट आ जाएंगे।
ये हो रहा नुकसान
-समय से रिजल्ट न आने की वजह से छात्र किसी भी अन्य राज्य में पीजी में दाखिला लेने से वंचित।
-रिजल्ट न आने से सीडीएस जैसी भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने से वंचित।
-छात्रवृत्ति के आवेदन के लिए पिछली कक्षा का रिजल्ट जरूरी लेकिन रिजल्ट न आने की वजह से छात्रवृत्ति से वंचित।
-तीन साल का स्नातक कोर्स पूरा करने में छात्र के चार से पांच साल बर्बाद हो रहे हैं।