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Wednesday, February 5, 2025

ब्रिटिशकाल में धन्ना सेठ रहे मंशाराम की कनॉट पैलेस में ढहने वाली है इमारत जल्द होगा काम शुरू

देहरादून। घंटा घर के निकट कनॉट प्लेस जो देहरादून के इतिहासों में शामिल है अब बहुत जल्द जमींदोज हो जाएगा !  14 सितंबर को इसे खाली कराने का काम शुरू हो जाएगा। कनॉट प्लेस के निर्माण के बाद यहां 150 से अधिक परिवार और 70 के करीब दुकानें हैं।

सन् 1930 से 40 के दशक में देहरादून की पहली इमारत थी जो तीन मंजिला बनी थी। उस वक्त देहरादून के धनी सेठ और बैंकर्स रहे मनसाराम ने दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर इसे बनवाया था। मनसाराम ने बॉम्बे से आर्किटेक्ट बुलाकर इस बिल्डिंग का निर्माण कराया था। इसके निर्माण के लिए सेठ मनसाराम ने भारत इन्स्योरेन्स से एक लाख 30 हजार रुपये लोन लिया था। इसे मुख्य रूप से विभाजन के समय यहां आने वाले लोगों के लिए तैयार किया गया था। जिससे लोग यहां अपना व्यवसाय कर सकें। लेकिन अब इसे खाली करने और उसके बाद जमींदोज करने की कवायद तेज हो गई है।

इस इमारत में करीब 82 साल से दुकान चला रहे दुकानदार बताते हैं कि 24 रुपये किराये पर उनके पिता ने मनसाराम से दुकान किराए पर ली थी तब से ये दुकान उनके पास है, लेकिन LIC उनको बाहर करने के लिए हर कोशिश कर रही है।दुकानदार कहते हैं कि इस उम्र में वो अब कहां जाएं। इस बिल्डिंग में ऐसे कई लोग रह रहे हैं जो अपनी रोजी रोटी यहां कई दशक से चला रहें हैं।तब से अब तक इमारत में रहने वाले लोगों और LIC के बीच विवाद चल रहा है। स्थानीय लोग ये भी बताते हैं कि इस इमारत को गिरासू बनाया गया है। अगर इसपर समय-समय में मरम्मत होती तो ये गिरासू नहीं बनती। यहां रह रहे लोगों का आरोप है कि इस ऐतिहासिक भवन को गिरासू करार देने के लिए कई फर्जी रिपोर्टें भी लगाई गई। जिसके पीछे एलआईसी की मंशा यहां से लोगों को खाली करवाना है। हालांकि अब कोर्ट की ओर से भी इसे खाली कराने के आदेश दे दिये गये हैं।

उधर प्रशासन की ओर से भी इमारत को खाली कराने की कार्रवाई आगे बढ़ाई जा रही है, जिस पर जल्द कार्रवाई की जाएगी। जिला प्रशासन और पुलिस की ओर से तैयारी कर दी गई है। 14 सितंबर को ये इमारत खाली कराई जा सकती है। एलआईसी और स्थानीय दुकानदारों के बीच इस विवाद में फिलहाल की स्थिति तो यही कह रही है कि ये इमारत खाली हो जाएगी। हालांकि ये देखना होगा की प्रशासन इस पर आगे क्या निर्णय लेता है। लेकिन इतना जरूर है कि अगर इमारत खाली होती है और इसे जमींदोज करने की कार्यवाही होती है तो देहरादून की इस ऐतिहासिक इमारत की सिर्फ यादें ही रह जाएंगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

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