जागरूकता लोकतंत्र की सबसे बड़ी ज़रूरत है. और जागरूकता के लिए सूचना सबसे बड़ा औज़ार है. इसीलिए पत्रकारिता को लोकतंत्र के चर्तुथ स्तंभ कहा जाता है. समय बदल रहा है, बाजारवाद सबको प्रभावित कर रहा है. हम संक्रमण काल से गुज़र रहे है. मुख्य धारा की पत्रकारिता भी इससे अछूती नहीं है- यही कारण है की बदलते दौर के साथ पत्रकारिता पर बाजारवाद की शरण में पहुंचने के आरोप लग रहे है ।
आम आदमी की लड़ाई के लिए ‘जब तलवारों से काम ना चलता हो तो अखबार निकालो’ जैसे बुलंद हौसलों के साथ शुरू हुई पत्रकारिता आज कारपोरेट घरानों द्वारा संचालित मीडिया हाउस अथवा उनके मालिकों की स्वार्थ की कठपुतली बन रही है ।
पत्रकारिता आम जन की आवाज है. लेकिन, बाजारवाद और कारपोरेट हाउस संचालित मीडिया आज एरेस्टोकिरेट हो गया है और उनसे जुड़े पत्रकार भी चाहे अनचाहे इस षड्यंत्र का शिकार हो रहे हैं. आम आदमी की आवाज नक्कारखाने में तूती के तरह हो गयी है. आम आदमीं की यह निराशा और अवसाद कभी-कभी सोशियल मीडिया पर कटु आलोचनाओं के रूप में प्रकट हो रहा है मीडिया के इस पेज थ्री संस्करण में हमें ये स्वीकारने में भी कतई गुरेज नहीं है कि आज मीडिया की स्थिति दलाल के समानांतर हो गयी है जो सिर्फ पैसे और ताकत की भाषा समझते हैं.
इन सब कमियों के बावजूद शोषित पीडित समाज आज भी लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ की ओर उम्मीद भरी नजर से देखता है . ये उम्मीद, नाउम्मीदी में ना बदले. उम्मीदों की घोर निराशा और छलावे के बीच हमारी ये एक छोटी सी कोशिश है – ये प्रयास किया है Ground 0 के माध्यम से.
आप लोगों का शुरूआती प्रोत्साहन हमें हौसला देता है- कार्पोरेट आंधी के थपेडों में जन पक्षीय पत्रकारिता बुझते दीपक को तेल देने की हमारी कोशिश निरंतर चलती रहेगी.
Ground 0 के माध्यम से हम जनता के बीच जनता के ही निश्पक्ष सरोकारों को उठाने का संकल्प ले रहे हैं – हम आश्वस्त हैँ कि जन सहकारिता के आधार पर न्यू मीडिया के रूप में जन उम्मीद की यह मशाल खबरों और मुद्दोँ के माध्यम से आम जन के बीच प्रकाशमान रहेगी
हम संकल्प लेते हैँ कि Ground 0 उस आम जन की आवाज बनेगा, जिसे मुख्यधारा के मीडिया ने हाशिये पर धकेल दिया है. हम इस बात का भी संकल्प लेते हैं कि जन हित में जनसरोकारों के लिए, समालोचना के साथ Ground 0 सत्ता प्रतिस्ठानों के बीच भी निष्पक्ष भूमिका निभाता हुआ नजर आयेगा और आदर्श पत्रकारिता के मानकों पर खरा उतरने में सफल होगा ।
जागरूकता लोकतंत्र की सबसे बड़ी ज़रूरत है. और जागरूकता के लिए सूचना सबसे बड़ा औज़ार है. इसीलिए पत्रकारिता को लोकतंत्र के चर्तुथ स्तंभ कहा जाता है. समय बदल रहा है, बाजारवाद सबको प्रभावित कर रहा है. हम संक्रमण काल से गुज़र रहे है. मुख्य धारा की पत्रकारिता भी इससे अछूती नहीं है- यही कारण है की बदलते दौर के साथ पत्रकारिता पर बाजारवाद की शरण में पहुंचने के आरोप लग रहे है ।
हरीश थपलियाल
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