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Sunday, April 20, 2025

Uttarakhand कांग्रेस: इस दावेदार ने एनडी तिवारी की विरासत पर पार्टी में भारी बहस पैदा की 2023

कांग्रेस का गढ़ लोकसभा सीट है। N D Tiwari भी राज्य गठन के समय यहां से सांसद थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने विधायक का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। एनडी तिवारी के परिवार में अब दावेदारी का स्वर उठ रहा है।

लोकसभा सीट पर पूर्व सांसद एनडी तिवारी के परिवार से दावेदारी की चर्चा हो रही है। परिवार के सदस्यों ने कहा कि एनडी तिवारी, जो इस सीट पर सांसद रहे हैं, उनके परिवार से ही एक व्यक्ति को टिकट मिलना चाहिए। साथ ही, एनडी तिवारी के नजदीकी कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता दीपक बल्यूटिया ने खुलकर इस पद की दावेदारी की है, जो कांग्रेस में हड़कंप मचा रहा है।

पार्टी का ही निर्णय सही होगा

कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता और एनडी तिवारी के सगे संबंधी दीपक बल्यूटिया ने खुलकर घोषणा की है कि वह अगला लोकसभा चुनाव से लड़ेंगे अगर पार्टी उन्हें अवसर देगी। उन्होंने कहा कि वह लंबे समय से कांग्रेस में रहे हैं और पार्टी के कर्मठ सदस्य रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वे सिर्फ पार्टी का निर्णय मानेंगे।

कांग्रेस ने पिछली बार हल्द्वानी विधानसभा सीट के लिए दीपक बल्यूटिया को चुना था। उन्हें टिकट भी पक्का लग रहा था, लेकिन बाद में सुमित हृदयेश को टिकट मिल गया, जो चुनाव जीत गया। बाद में कहा गया कि दीपक अब अगले निकाय चुनाव में कांग्रेस से मेयर पद का टिकट मांग सकते हैं। हालाँकि, उन्होंने तुरंत लोकसभा सीट का टिकट मांगकर विवाद पैदा किया है।

रोहित शेखर ने भी दावेदारी की थी

एनडी तिवारी की दूसरी पत्नी उज्जवला शर्मा का पुत्र रोहित शेखर भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से चुनाव जीता था। वह भी अपने पिता एनडी तिवारी के साथ क्षेत्र में कई बार घूमता था। वह अपने पिता के साथ हरीश रावत सरकार के दौरान भी एसटीएच में मौन आंदोलन पर बैठे थे। रोहित शेखर के समर्थकों ने एनडी तिवारी की मृत्यु के बाद भी उनकी दावेदारी की घोषणा की, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। बाद में वह भाजपा का सदस्य बन गया। बाद में वे मर गए।

राह अधिक दावेदार है

दीपक बल्यूटिया का मार्ग कठिन है। कांग्रेस के एक बड़े दलित नेता ने भी इस सीट से चुनाव लड़ने का इरादा जताया है। साथ ही, अन्य प्रमुख नाम भी लोकसभा सीट से कांग्रेस का टिकट चाहते हैं। यह भी है कि तिवारी की मौत के बाद कांग्रेस ने कभी भी इस सीट पर उनके नाम पर चुनाव नहीं लड़ा। भाजपा सरकार में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भी कई बार एनडी तिवारी का नाम लिया है। यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस ने तिवारी को भूल गया है, लेकिन अब तिवारी की विरासत पर बहस हो रही है।

यह अच्छा है कि लोगों ने स्वतंत्र चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की: माहरा

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने दीपक बल्यूटिया की दावेदारी पर कहा कि यह खुशी की बात है कि कांग्रेस नेता खुद चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं। बताया कि पार्टी भी टिकटों के लिए सर्वे कर रही है। उन्हें इस सीट पर चुनाव लड़ने की संभावना पर कहा कि वर्तमान में मैं कांग्रेस संगठन को मजबूत करने में लगा हूं और मेरा काम चुनाव लड़ना नहीं बल्कि उन्हें जीतना है।

लोकसभा सीट, मोदी शासनकाल में भाजपा का आधार

कांग्रेस का गढ़ लोकसभा सीट है। N D Tiwari भी राज्य गठन के समय यहां से सांसद थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने विधायक का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। 2002 के उपचुनाव में कांग्रेस के डॉ. महेंद्र सिंह पाल इस सीट से सांसद चुने गए। 2004 और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर केसी सिंह बाबा जीते।

2009 में, उन्होंने भाजपा के बचे हुए सिंह रावत को हराया। नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश के बाद भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल की। 2019 में अजय भट्ट और 2014 में भगत सिंह कोश्यारी सांसद बने। MD Tiwari भी इस सीट पर है। 1991 में वह भाजपा के बलराज पासी से चुनाव हार गए थे। माना जाता है कि तिवारी तब प्रधानमंत्री भी बन गए होते। 1998 में, वह इस सीट पर भाजपा के इला पंत से चुनाव भी हार गया था।

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