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Sunday, December 22, 2024

कर्ज के जाल में बुरी तरह से फंसी उत्तराखंड सरकार

कर्ज के जाल में बुरी तरह से फंसी उत्तराखंड सरकार

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

 उत्तराखंड में जिस तरह से माननीयों के ठाठबाट हैं, सरकारी खर्चे हैं, उससे दूरदूर तक इस बात का एहसास नहीं किया जा सकता कि यह वही उत्तराखंड है, जो हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज़ में डूबा हुआ है. अगर आप विधायकों के सरकारी खर्चकाडेटा देखें या सुनें तो आपको भी हैरत हो सकती है. उत्तर प्रदेश से अलग होकर 2000 में उत्तराखंड बना था और तबसे देखा जाए तो माननीयों पर सरकारी खज़ाने का 100 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है.पहले आंकड़े देखते हैं. उत्तराखंड राज्य की 2021-22 में अनुमानित जीडीपी 2.78 लाख करोड़ रुपये आंकी गई, जिसमें से कुल खर्च 57,400 करोड़ रुपये का रहा. इसके बरक्स 1 करोड़ से कुछ ही ज़्यादा की आबादी वाले इस छोटे राज्य पर 60,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का कर्ज़ चढ़ा हुआ हैइन आंकड़ों के बाद यह भी एक फैक्ट है कि सरकारी कामकाज में खर्च पर कंट्रोल के निर्देश अक्सर जारी होते हैं, लेकिन विधायकों के खर्च का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. निर्वाचित सरकार में पहले साल 2002-03 में माननीयों के वेतन भत्ते पर एक साल का जो कुल खर्चा 80 लाख रुपये का था, वो अब बढ़कर हर साल 14 से 15 करोड़ तक पहुंचने लगा है. हालत ये है कि ये कुल खर्चा अब तक करीब 100 करोड़ पर पहुंच चुका है. इन आंकड़ों का खुलासा तब हुआ, जब आरटीआई के तहत इस तरह की जानकारी मांगी गई. अब इस स्थिति पर विशेषज्ञ भी चिंता जता रहे हैं. सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आरटीआई एक्टिविस्ट के आवेदन पर यह आधिकारिक जानकारी दी गई. आरटीआई के इस खुलासे पर वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि जिस तरह पंजाब ने विधायकों के खर्चों में कटौती की है ताकि राज्य की माली हालत बेहतर हो, उसी तरह उत्तराखंड सरकार को भी सोचना होगा. गौरतलब है कि पंजाब पर 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ है, जिसके लिए मान सरकार ने विधायकों की पेंशन में कटौती का बड़ा फैसला किया.उत्तराखंड सरकार कर्ज के जाल में बुरी तरह से फंसती जा रही है। हालात यह हैं कि अपनी जरूरतों के लिए हर साल वह जो कर्ज ले रही है, उसके 71 प्रतिशत के बराबर राशि उसे पुरानी उधारी और उस पर ब्याज को चुकाने पर खर्च करनी पड़ रही है। भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की लेखापरीक्षा रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है।विधानसभा के पटल पर  31 मार्च 2021 को समाप्त हुए वर्ष के लिए कैग की यह रिपोर्ट सदन पटल पर रखी गई। कैग ने बजट कम खर्च करने पर भी सवाल उठाए हैं। कैग रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार द्वारा कुल उधार पर ऋण और उसके ऊपर ब्याज के पुनर्भुगतान की प्रतिशतता अधिक होने से इसका खास फायदा नहीं हो पाता है।बकाया कर्ज में 13.66 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही है। 2016-17 से 2020-21 की अवधि में राज्य सरकार ने 29168 करोड़ रुपये का ऋण लिया। 2020 तक राज्य पर 73,751 करोड़ रुपये का कर्ज था जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 30.05 प्रतिशत आंकी गई।कैग का मानना है कि सरकार जो भी कर्ज लिए जा रहे हैं, उससे परिसंपत्तियों का निर्माण होना चाहिए ताकि उसका फायदा मिले। कैग ने उच्चस्तरीय ऋण को आर्थिक विकास के लिए हानिकारक माना है। ऐसी स्थिति में सरकारों पर कर बढ़ाने और खर्च घटाने का दबाव बनता है।वर्ष 2005-06 से 2019-20 तक की विधानसभा से पारित अनुदान से इतर खर्च की गई 42 हजार 873 करोड़ की धनराशि का अब तक हिसाब नहीं दिया गया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसका प्रमुखता से जिक्र किया है साथ ही धनराशि को विधानसभा से विनियमित कराने को कहा है। रिपोर्ट में उत्तराखंड बजट मैनुअल के हवाले से कहा गया है कि यदि वर्ष के समापन के बाद विनियोग से अधिक की धनराशि खर्च की जाती है, तो लोक लेखा समिति की सिफारिश के आधार पर विधानसभा को प्रस्तुत करके इसे नियमित किया जाना चाहिए। लेकिन वर्ष 2005-06 से 2019-20 के वर्षों में 42,873.61 करोड़ की अधिक खर्च दी गई राशि को अभी तक विधानसभा से नियमित नहीं कराया गया है। यानी विधानसभा को इस बारे में कोई हिसाब नहीं मिला है। प्रदेश सरकार की ओर से विभागों को उनकी आवश्यकताओं की पूरा करने के लिए अनुपूरक अनुदान से बजट जारी किया जाता है। लेकिन 29 विभागों ने अनुपूरक अनुदान खर्च ही नहीं किया है। कैग की गरिपोर्ट में अनुपूरक अनुदान को अनावश्यक बताया है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में सरकार की ओर से 29 सरकारी महकमों को 38530 करोड़ बजट का प्रावधान किया गया। इसमें विभागो ने 34635 करोड़ की खर्च किए। सरकार ने विभागों को राजस्व व पूंजीगत मद की पूर्ति के लिए 3421 करोड़ का अनुपूरक अनुदान दिया। लेकिन वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक विभागों के पास 7316 करोड़ का बजट शेष रह गया। जो अनुपूरक अनुदान से अधिक है। कैग ने अनावश्यक अनुपूरक अनुदान देने पर सवाल खड़े किए हैं।लोक निर्माण विभाग में 2015-16 से 31 मार्च 2021 के दौरान 143 विकास योजनाएं अधर में लटकी थीं। 614 करोड़ रुपये की लागत से बनाई जाने वाली इन योजनाओं पर 437.61 करोड़ रुपये खर्च भी हो चुके हैं, लेकिन इनमें से कोई योजना पूरी नहीं हो पाई। भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में इस पर सवाल उठाया है। रिपोर्ट में पूंजीगत खर्च अवरुद्ध करने की प्रवृत्ति को सही नहीं माना गया है। कहा गया है कि विकास योजनाओं की धनराशि रोके जाने से कार्य की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। राज्य को अपेक्षित लाभ से लंबे समय तक वंचित रखता है। यानी जनता को योजनाओं का समय पर फायदा नहीं मिल पाता हैउत्तराखंड राज्य में 2016-17 और 2020-21 के दौरान सकल राज्य घरेलू उत्पाद के अनुपात में उत्तर पूर्व और हिमालय राज्यों के औसत से काफी कम खर्च किया। इतना ही नहीं विकास कार्यों पर भी खर्च का अनुपात 2016-17 में उत्तराखंड में कम रहा, लेकिन 2020-21 में थोड़ा बढ़ा। स्वास्थ्य क्षेत्र में कुल खर्च के अनुपात में राज्य का खर्च हिमालयी राज्यों के औसत से कम था। सामाजिक क्षेत्र में उत्तराखंड का खर्च अधिक था और पूंजीगत खर्च के मामले में भी उत्तराखंड ने 2020-21 में उत्तरपूर्व व हिमालय राज्यों से कम खर्च किया।

लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।

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