देहरादून। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में 3240 दवा वितरण केन्द्रों पर मात्र 539 फार्मासिस्ट ही कार्यरत है। जिसमें 539 डिप्लोमा एलोपैथिक फ़ार्मसिस्टों की वर्ष 2006 में स्वास्थ्य उपकेंद्रो के लिए नियुक्ति हुई। अब इन्हें भी सीएचसी-पीएचसी में समायोजित करने की कवायत चल रही है। जबकि 1800 उपकेंद्रो में बिना फ़ार्मसिस्ट के दवा वितरण किया जा रहा हैं। वहीं 1440 वेलनेस केंद्रो में सीएचओ दवा वितरण का कार्य कर रहा है। जिसमें कोई भी एलोपैथिक फ़ार्मसिस्ट नही है। ऐसे में सवाल उठता है कि शेष केन्द्रों पर दवा बांटने का काम कौन कर रहा है। फार्मेसी एक्ट की 1948 के नियमानुसार दवा वितरण, स्टोरेज का काम रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट ही कर सकता है। ये ही नहीं प्रदेश के ज़्यादातर अस्पतालों में प्रधानमंत्री जन औषधी केंद्र भी बिना फ़ार्मसिस्ट के संचालित किए जा रहे हैं। प्रदेश के पंजीकृत बेरोज़गार डिप्लोमा फ़ार्मसिस्ट अरविंद जोशी,सुधीर रावत, मनोज रावत,रोहित ममगाईं,सुनील जुयाल आदि फ़ार्मसिस्टों का कहना है कि
उत्तराखंड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत ने हाल ही में प्रदेश में मौजूद मेडिकल स्टोरों में सत्यापन और फ़ार्मसिस्ट की अनिवार्यता के फैसले का स्वागत करते है। लेकिन स्वास्थ्य महकमे में बिना फ़ार्मसिस्टों के दवा वितरण करना उचित नही है। यह प्रदेश के 22 हजार पंजीकृत फ़ार्मासिस्टों के साथ अन्याय है। साथ ही साथ फार्मेसी एक्ट 1948 का बड़ा उल्लंघन है।